Tuesday, March 29, 2016

रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में 14 तेवरियाँ




रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरियाँ 
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रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....1.
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हर पल असुर करेंगे बस वन्दना खलों की
बस वन्दना खलों की , नित अर्चना खलों की |
नित अर्चना खलों की , शब्दों में इनके बोले
शब्दों में इनके बोले मधुव्यंजना खलों की |
मधुव्यंजना खलों की , सज्जन के ये हैं निंदक
सज्जन के ये हैं निंदक दुर्भावना खलों की |
दुर्भावना खलों की , हर भाव में सियासत
हर भाव में सियासत , मत चौंकना खलों की |
 मत चौंकना खलों की जन-जन पे आज भारी
जन-जन पे आज भारी अधिसूचना खलों की |
+ रमेशराज  



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....2.
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वो हो गया है जादू , गर्दन छुरी को चाहे
गर्दन छुरी को चाहे , अबला बली को चाहे |
अबला बली को चाहे , बलवान ' रेप ' करता
बलवान ' रेप ' करता , मन उस खुशी को चाहे
मन उस खुशी को चाहे , जिसमें भरी है हिंसा
जिसमें भरी है हिंसा , उस गुदगुदी को चाहे
उस गुदगुदी को चाहे , जो जन्म दे रुदन को
जो जन्म दे रुदन को , उस विप्लवी को चाहे |
उस विप्लवी को चाहे , जो क्रांति का विरोधी
जो क्रांति का विरोधी , उस आदमी को चाहे |
+ रमेशराज


रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....3.
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माँ मांगती दुआएँ बच्चों का पेट भर दे
बच्चों का पेट भर दे , कुछ रोटियाँ इधर दे |

 कुछ रोटियाँ इधर दे ' इतना करम हो मौला

इतना करम हो मौला , छोटा-सा एक घर दे |

छोटा-सा एक घर दे , कब तक जियें सड़क पर

कब तक जियें सड़क पर , खुशियों-भरा सफर दे |

खुशियों-भरा सफर दे , हम परकटे-से पंछी

हम परकटे-से पंछी , हमको हसीन पर दे |

हमको हसीन पर दे , माँ कह रही खुदा से

माँ कह रही खुदा से बच्चों को शाद कर दे |

+ रमेशराज



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....4.
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अब दे रहे दिखाई सूखा के घाव जल में
सूखा के घाव जल में , जल के कटाव जल में |
जल के कटाव जल में , मछली तड़प रही हैं
मछली तड़प रही हैं , मरु का घिराव जल में |
मरु का घिराव जल में , जनता है जल सरीखी
जनता है जल सरीखी , थल का जमाव जल में |
थल का जमाव जल में , थल कर रहा सियासत
थल कर रहा सियासत , छल का रचाव जल में |
छल का रचाव जल में , जल नैन बीच सूखा
 जल नैन बीच सूखा , दुःख का है भाव जल में |
रमेशराज


रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....5.
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बस दास-भाव वाला हम में है रक्त जय हो
हम में है रक्त जय होहम उनके भक्त जय हो |
हम उनके भक्त जय हो , जो हैं दबंग-गुंडे
जो हैं दबंग-गुंडे , जो सच से त्यक्त जय हो |
जो सच से त्यक्त जय हो , जयचंद-मीरजाफर
जयचंद-मीरजाफर में निष्ठा व्यक्त जय हो |
जय हो विभीषणों की , कलियुग के कौरवों को
कलियुग के कौरवों को करते सशक्त जय हो |
करते सशक्त जय हो , भायें हमें विदेशी
भायें हमें विदेशी , हम देश-भक्त जय हो |
+रमेशराज



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....6.
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कुछ भी न होगा प्यारेसत्ता बदल-बदल के
सत्ता बदल-बदल केइस रास्ते पे चल के |
इस रास्ते पे चल के , तुझको छलेंगे  रहबर
तुझको छलेंगे  रहबर , गर्दन गहें उछल के |
गर्दन गहें उछल के , फिर जेब तेरी काटें
फिर जेब तेरी काटें , इस राह के धुंधलके |
इस राह के धुंधलके , तुझको न जीने देंगे
तुझको न जीने देंगेहोना न कुछ उबल के |
होना न कुछ उबल के , सिस्टम बदलना होगा
सिस्टम बदलना होगातब नूर जग में झलके |
रमेशराज 



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....7.
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पड़नी है और तुझ पे , टेक्सों की मार प्यारे
 टेक्सों की मार प्यारे , नित झेल वार प्यारे |
 नित झेल वार प्यारेमिलना न न्याय तुझको
मिलना न न्याय तुझको , चुभनी कटार प्यारे |
चुभनी कटार प्यारे , बाबू की अफसरों की
 बाबू की अफसरों की , आरति उतार प्यारे |
आरति उतार प्यारे , महंगाई झेल हर दिन
हर दिन  बजट पे तेरेडाके हज़ार प्यारे |
डाके हज़ार प्यारे , शासन बना लुटेरा
शासन बना लुटेरा , अब तो विचार प्यारे |
रमेशराज



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी...8.
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कुछ देश-भक्त बन के , अब खा रहे वतन को
अब खा रहे वतन को , हर भोर की किरन को |
हर भोर की किरन को तम में बदल रहे हैं
तम में बदल रहे हैं , सुख से भरे चलन को |
सुख से भरे चलन को दुःख-दर्द दे रहे हैं
दुःख-दर्द दे रहे हैं , हर एक भोले मन को |
हर एक भोले मन को , अंगार भेंट करते
अंगार भेंट करते , तैयार हैं हवन को |
तैयार हैं हवन को , ये देश-भक्त बन कर
 ये देश-भक्त बन कर , नित लूटते चमन को |
रमेशराज 



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....9.
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सब सूदखोर घेरे , अब क्या करेगा 'होरी '
अब क्या करेगा 'होरी ', भूखा मरेगा 'होरी '|
भूखा मरेगा 'होरी ', घर में न एक दाना
घर में न एक दाना , गिरवी धरेगा 'होरी '|
गिरवी धरेगा 'होरी ', धनिया के कंगनों को
धनिया के कंगनों को , फिर भी डरेगा 'होरी '|
फिर भी डरेगा 'होरी ', कर्जा है अब भी बाक़ी
कर्जा है अब भी बाक़ीये भी करेगा होरी |
 ये भी करेगा होरी , बैलों को बेच देगा
बैलों को बेच देगा , कर्जा भरेगा 'होरी '| 
रमेशराज 



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....10.
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जनता की जेब सत्ता , बस आजकल टटोले
बस आजकल टटोले , ' करना विकास ' बोले |
करना विकास ' बोले , ऐसे नियम बनाए
 ऐसे नियम बनाए , दागे नियम के गोले |
दागे नियम के गोले , कर-जोड़ खड़ी जनता
कर-जोड़ खड़ी जनता , अपनी जुबां न खोले |
अपनी जुबां न खोले , बस कांपती है थर-थर
बस कांपती है थर-थर , सत्ता के देख ओले | 
रमेशराज 



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....11.
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दिन देश-भर में अच्छे लायेंगे अब विदेशी
लायेंगे अब विदेशी , आयेंगे अब विदेशी |
आयेंगे अब विदेशी दौलत यहाँ लुटाने
दौलत यहाँ लुटाने,  भाएंगे अब विदेशी |
 भाएंगे अब विदेशी , सेना में  रेलवे में
सेना में  रेलवे में , गायेंगे अब विदेशी |
गायेंगे अब विदेशी , "अब है हमारा भारत"
भारत  के काजू -पिश्ता खायेंगे अब विदेशी | 
खायेंगे अब विदेशी , करके हलाल मुर्गा
मुर्गा-सरीखा हमको पाएंगे अब विदेशी |
रमेशराज



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....12.
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तम के हैं आज जारी हर रोशनी पे हमले
हर रोशनी पे हमले , अब ज़िन्दगी पे हमले |
अब ज़िन्दगी पे हमले , नित मौत कर रही है
नित मौत कर रही है मन की खुशी पे हमले |
मन की खुशी पे हमले , दुःख-दर्द कर रहे हैं
दुःख-दर्द कर रहे हैं सुख की नदी पे हमले |
सुख की नदी पे हमले सूखा के हो रहे हैं
सूखा के हो रहे हैं हर सू नमी पे हमले |
हर सू नमी पे हमले , मरुथल-सी ज़िन्दगी है
 मरुथल ने कर दिए हैं खिलती कली पे हमले |
रमेशराज



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....13.
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मातों-भरा है जीवन , जनता की जय कहाँ है
 जनता की जय कहाँ है , आनन्द-लय कहाँ है |
 आनन्द-लय कहाँ है , दुःख-दर्द हैं घनेरे
दुःख-दर्द हैं घनेरे , सुख का विषय कहाँ है |
सुख का विषय कहाँ हैसंघर्षमय है जीवन
संघर्षमय है जीवन , रोटी भी तय कहाँ है |
रोटी भी तय कहाँ है , बस भुखमरी का आलम
बस भुखमरी का आलम , दुःख पर विजय कहाँ है |
 दुःख पर विजय कहाँ है , केवल बुढ़ापा घेरे
केवल बुढ़ापा घेरे , उन्मुक्त वय कहाँ है |
--रमेशराज



रमेशराज की ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ में तेवरी....14.
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हम पे कुनीतियों के कोड़ों की मार क्यों है ?
कोड़ों की मार क्यों है ? शासन कटार क्यों है ?
 शासन कटार क्यों है ? सोचेगा बोल कब तू
 सोचेगा बोल कब तू , हर बार हार क्यों है ?
हर बार हार क्यों है ? गुंडों को चुन न प्यारे
 गुंडों को चुन न प्यारे , गुंडों से प्यार क्यों है ?
 गुंडों से प्यार क्यों है ? सुधरे न ऐसे सिस्टम
 सुधरे न ऐसे सिस्टम , ऐसा विचार क्यों है ?
 ऐसा विचार क्यों है ? सत्ता बदलना हितकर
 सत्ता बदल दी अब भी तुझको बुखार क्यों है ?
रमेशराज
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-रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001


Mo.-9634551630